हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए
सर में तकमील का था इक सौदा
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
पास रह कर जुदाई की तुझ से
उस के और अपने दरमियान में अब
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल