जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए
पास रह कर जुदाई की तुझ से
शर्म दहशत झिझक परेशानी
इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
थी जो वो इक तमसील-ए-माज़ी आख़िरी मंज़र उस का ये था
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम