जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान