ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
बरसात है दिल डस रहा है पानी
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी