ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद