ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं