ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर