जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
जाने वाले क़मर को रोके कोई
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप