लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
मुबहम पयाम
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा