साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
मुबहम पयाम
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा