कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर