हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
जाने वाले क़मर को रोके कोई
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
ज़ब्त-ए-गिर्या
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत