बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
बरसात है दिल डस रहा है पानी
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
ज़ब्त-ए-गिर्या
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर