ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
बरसात है दिल डस रहा है पानी
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं