ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
जाने वाले क़मर को रोके कोई
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
बरसात है दिल डस रहा है पानी
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद