ये चमेली की अध-खिली कलियाँ
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
हाए ये सादगी ओ पुरकारी
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल