एक मुद्दत सितम उठाने पर
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
फिर किसी बात का ख़याल आया
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
ये चमेली की अध-खिली कलियाँ
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त