क्यूँ-कर दिल-ए-ग़म-ज़दा न फ़रियाद करे
अब गर्म ख़बर मौत के आने की है
अंजाम पे अपने आह-ओ-ज़ारी कर तू
खींचे मुझे मौत ज़िंदगानी की तरफ़
पुतली की तरह नज़र से मस्तूर है तू
जो चश्म ग़म-ए-शह में सदा रोती है
खो दिल के मरज़ को ऐ तबीब-ए-उम्मत
राही तरफ़-ए-आलम-ए-बाला हूँ मैं
बालों पे ग़ुबार-ए-शेब ज़ाहिर है अब
अब हिन्द की ज़ुल्मत से निकलता हूँ मैं
जिस पर कि नज़र लुत्फ़ की शब्बीर करें
ग़फ़लत में न खो उम्र कि पछताएगा