क्या दस्त-ए-मिज़ा को हाथ आई तस्बीह
ठोकर भी न मारेंगे अगर ख़ुद-सर है
रुत्बा जिसे दुनिया में ख़ुदा देता है
बे-जा नहीं मद्ह-ए-शह में ग़र्रा मेरा
अफ़ज़ल कोई मुर्तज़ा से हिम्मत में नहीं
बादल आ के रो गए हाए ग़ज़ब
मय-ख़ान-ए-कौसर का शराबी हूँ मैं
ऐ मोमिनो फ़ातिमा का प्यारा शब्बीर
ऐ शाह के ग़म में जान खोने वालो
गुलज़ार-ए-जहाँ से बाग़-ए-जन्नत में गए
बरहम है जहाँ अजब तलातुम है आज
शब्बीर का ग़म ये जिस के दिल पर होगा