बुत-ख़ाने से दिल अपने उठाए न गए
न जानूँ 'मीर' क्यूँ ऐसा है चिपका
हाल-ए-बद में मिरे ब-तंग आ कर
कोह-ओ-सहरा भी कर न जाए बाश
तड़प है क़ैस के दिल में तह-ए-ज़मीं इस से
मय-कशी सुब्ह-ओ-शाम करता हूँ
हर-चंद गदा हूँ मैं तिरे इश्क़ में लेकिन
तस्कीन-ए-दिल के वास्ते हर कम-बग़ल के पास
दिल टुक उधर न आया ईधर से कुछ न पाया
मैं बे-नवा उड़ा था बोसे को उन लबों के
न आया वो तो क्या हम नीम-जाँ भी
ताब-ओ-ताक़त को तो रुख़्सत हुए मुद्दत गुज़री