वफ़ा-दारी ब-शर्त-ए-उस्तुवारी अस्ल ईमाँ है
मंज़ूर थी ये शक्ल तजल्ली को नूर की
जान तुम पर निसार करता हूँ
जुनूँ तोहमत-कश-ए-तस्कीं न हो गर शादमानी की
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले
पिन्हाँ था दाम-ए-सख़्त क़रीब आशियान के
मैं ने कहा कि बज़्म-ए-नाज़ चाहिए ग़ैर से तिही
मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं
यूसुफ़ उस को कहो और कुछ न कहे ख़ैर हुई
नज़्ज़ारे ने भी काम किया वाँ नक़ाब का