इश्क़ भी क्या चीज़ है सहल भी दुश्वार है
उन को इधर देखना मुझ को उधर देखना
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अज़मत-ए-कअबा मुसल्लम है मगर बुत-कदा में
बातें हैं वाइज़ों की अज़ाब ओ सवाब क्या
तौबा के टूटते का है 'माइल' मलाल क्यूँ
किस मुँह से करूँ मैं तन-ए-उर्यां की शिकायत
मानें जो मेरी बात मुरीदान-ए-बे-रिया
डूबा हुआ उठूँ दम-ए-महशर शराब में
दिल क्या निगाह-ए-मस्त से मय-ख़ाना बन गया
तुम ख़ूब उड़ाते रहो ख़ाका मिरे दिल का
मिलें किसी से तो बद-नाम हों ज़माने में
मुझे काफ़िर ही बताता है ये वाइज़ कम-बख़्त
ईमान जाए या रहे जो हो बला से हो