ज़िंदा रहें तो क्या है जो मर जाएँ हम तो क्या
दुनिया से ख़ामुशी से गुज़र जाएँ हम तो क्या
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है 'मुनीर' तेरी निगाह में
बे-ख़याली में यूँही बस इक इरादा कर लिया
नई महफ़िल में पहली शनासाई
ज़मीं के गिर्द भी पानी ज़मीं की तह में भी
शहर पर्बत बहर-ओ-बर को छोड़ता जाता हूँ मैं
बेचैन बहुत फिरना घबराए हुए रहना
मौसम-ए-सरमा की बारिश का ये पहला रोज़ है
ये आँख क्यूँ है ये हाथ क्या है
कटी है जिस के ख़यालों में उम्र अपनी 'मुनीर'
ख़ुश्बू की दीवार के पीछे कैसे कैसे रंग जमे हैं
वो जिस को मैं समझता रहा कामयाब दिन