चले ले के सर पर गुनाहों की गठरी

चले ले के सर पर गुनाहों की गठरी

सफ़र में ये है रू-सियाहों की गठरी

पड़ी रोज़-ए-महशर वहीं बर्क़ आ कर

जहाँ थी तिरे दाद-ख़्वाहों की गठरी

मुसाफ़िर मैं उस दश्त का हूँ कि जिस में

लुटी कितने गुम-कर्दा-राहों की गठरी

जहाँ सूस ने बहर से सर निकाला

मैं समझा है कश्ती तबाहों की गठरी

कुलाह-ए-ज़री माह-ए-नौ ने उड़ा ली

खुली थी कहीं कज-कुलाहों की गठरी

हम उन सरक़ा वालों में ऐ 'मुसहफ़ी' हैं

चुराते हैं जो बादशाहों की गठरी

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In Hindi By Famous Poet Mushafi Ghulam Hamdani. is written by Mushafi Ghulam Hamdani. Complete Poem in Hindi by Mushafi Ghulam Hamdani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.