हम भी ऐ जान-ए-मन इतने तो नहीं नाकारा
कभी कुछ काम तू हम को भी तो फ़रमाया कर
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है ईद का दिन आज तो लग जाओ गले से
जो मिला उस ने बेवफ़ाई की
चीन-ए-पेशानी न दिखलाओ मैं हूँ नाज़ुक-मिज़ाज
मुँह में जिस के तू शब-ए-वस्ल ज़बाँ देता है
क्यूँकर न तुझे दौड़ के छाती से लगा लूँ
इन आँखों से आब कुछ न निकला
आँखें हैं जोश-ए-अश्क से पनघट
इन दिनों शहर से जी सख़्त ब-तंग आया है
इस नाज़नीं की बातें क्या प्यारी प्यारियाँ हैं
कल पतंग उस ने जो बाज़ार से मँगवा भेजा
बातों ने उस की हम को ख़ामोश कर दिया है
किसी जंगल के गुल-बूटे से जी मेरा बहल जाता