Nazam Poetry (page 157)
रात और दिन के दरमियाँ कोई
आदिल मंसूरी
पत्थर पर तस्वीर बना कर
आदिल मंसूरी
नज़्म
आदिल मंसूरी
नज़्म
आदिल मंसूरी
नज़्म
आदिल मंसूरी
लहू को सुर्ख़ गुलाबों में बंद रहने दो
आदिल मंसूरी
लफ़्ज़ की छाँव में
आदिल मंसूरी
कीचड़ में अटा मौसम
आदिल मंसूरी
खिड़की अंधी हो चुकी है
आदिल मंसूरी
हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद
आदिल मंसूरी
गोश्त की सड़कों पर
आदिल मंसूरी
गोल कमरे को सजाता हूँ
आदिल मंसूरी
फ़ैज़
आदिल मंसूरी
एक नज़्म
आदिल मंसूरी
एक मंज़र
आदिल मंसूरी
दर्द तंहाई की पस्ली से निकल कर आया
आदिल मंसूरी
चाँद के पेट में हमल मछली
आदिल मंसूरी
चल निकलो
आदिल मंसूरी
बुध
आदिल मंसूरी
बंद मुट्ठी में होंट के टुकड़े
आदिल मंसूरी
अलिफ़ लफ़्ज़ ओ मआनी से मुबर्रा
आदिल मंसूरी
ऐनक के शीशे पर
आदिल मंसूरी
आमीन
आदिल मंसूरी
दुम
आदिल लखनवी
प्यार करते रहो
अदील ज़ैदी
दुकान-दार
अदील ज़ैदी
आँसू
अदील ज़ैदी
वो लम्हा जो मेरा था
अदा जाफ़री
तुम जो सियाने हो गुन वाले हो
अदा जाफ़री
साज़-ए-सुख़न बहाना है
अदा जाफ़री