सलीम कौसर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सलीम कौसर (page 3)
नाम | सलीम कौसर |
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अंग्रेज़ी नाम | Saleem Kausar |
जन्म की तारीख | 1945 |
तू सूरज है तेरी तरफ़ देखा नहीं जा सकता
तिलिस्म-ख़ाना-ए-अस्बाब मेरे सामने था
तारे जो कभी अश्क-फ़िशानी से निकलते
सरासर नफ़ा था लेकिन ख़सारा जा रहा है
सफ़र की इब्तिदा हुई कि तेरा ध्यान आ गया
क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं
फिर जी उठे हैं जिस से वो इम्कान तुम नहीं
न कोई नाम ओ नसब है न गोश्वारा मिरा
न इस तरह कोई आया है और न आता है
मुलाक़ातों का ऐसा सिलसिला रक्खा है तुम ने
मोहलत न मिली ख़्वाब की ताबीर उठाते
मिलना न मिलना एक बहाना है और बस
मैं उसे तुझ से मिला देता मगर दिल मेरे
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
लौ को छूने की हवस में एक चेहरा जल गया
लय मोहब्बत की है आहंग सुख़न-साज़ का है
क्या बताएँ फ़स्ल-ए-बे-ख़्वाबी यहाँ बोता है कौन
कुछ भी था सच के तरफ़-दार हुआ करते थे
कोई याद ही रख़्त-ए-सफ़र ठहरे कोई राहगुज़र अनजानी हो
कोई सच्चे ख़्वाब दिखाता है पर जाने कौन दिखाता है
किस की तहवील में थे किस के हवाले हुए लोग
कैसे हंगामा-ए-फ़ुर्सत में मिले हैं तुझ से
कहीं तुम अपनी क़िस्मत का लिखा तब्दील कर लेते
कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए
कभी सितारे कभी कहकशाँ बुलाता है
कभी मौसम साथ नहीं देते कभी बेल मुंडेर नहीं चढ़ती
जुनूँ तब्दीली-ए-मौसम का तक़रीरों की हद तक है
इस आलम-ए-हैरत-ओ-इबरत में कुछ भी तो सराब नहीं होता
ग़ुबार होती सदी के सहराओं से उभरते हुए ज़माने
इक घड़ी वस्ल की बे-वस्ल हुई है मुझ में