क्या ज़िद है मिरे साथ ख़ुदा जाने वगरना
फ़िराक़-ए-ख़ुल्द से गंदुम है सीना-चाक अब तक
जिस दम वो सनम सवार होवे
ग़रज़ कुफ़्र से कुछ न दीं से है मतलब
ऐ शैख़-ए-हरम तक तुझे आना जाना
वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं
है मुद्दतों से ख़ाना-ए-ज़ंजीर बे-सदा
फ़िक्र-ए-मआश इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
न कर 'सौदा' तू शिकवा हम से दिल की बे-क़रारी का
कैफ़िय्यत-ए-चश्म उस की मुझे याद है 'सौदा'
करता हूँ तेरे ज़ुल्म से हर बार अल-ग़ियास
कीजिए न असीरी में अगर ज़ब्त नफ़स को