तलाश करनी थी इक रोज़ अपनी ज़ात मुझे
ये भूत भी मिरे सर पर सवार होना था
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Rahat Indori
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(524) Peoples Rate This
मुझे बस इतनी शिकायत है मरने वालों से
रात की नींदें तो पहले ही उड़ा कर ले गया
हम अपने हाल पर ख़ुद रो दिए हैं
ये अलग बात ज़बाँ साथ न दे पाएगी
कुछ देखने की दिल में तमन्ना नहीं बाक़ी
शुमार मैं न करूँगा फ़िराक़ के शब ओ रोज़
इस दौर-ए-बे-दिली में कोई बात कैसे हो
तुम्हारी आरज़ू में मैं ने अपनी आरज़ू की थी
अपने लिए तो ख़ाक की ख़ुश्बू है ज़िंदगी
बहुत शर्मिंदा हूँ इबलीस से मैं
ये और बात इसे ज़िंदगी न कह पाएँ
वो मिरी सुब्हों का तारा वो मिरी रातों का चाँद