उस वक़्त दिल मिरा तिरे पंजे के बीच था
जिस वक़्त तू ने हात लगाया था हात को
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मय हो अब्र ओ हवा नहीं तो न हो
साफ़ दिल है तो आ कुदूरत छोड़
गदा को गर क़नाअत हो तो फाटा चीथड़ा बस है
जिस को देखा सो यहाँ दुश्मन-ए-जाँ है अपना
आब-ए-हयात जा के किसू ने पिया तो क्या
ने शिकवा-मंद दिल से न अज़-दस्त-दीदा हूँ
जुम्बिश-ए-दिल नहीं बेजा तू किधर भूला है
ख़ूबान-ए-जहाँ हों जिस से तस्ख़ीर
दिल-ए-उश्शाक़ परिंदों की तरह उड़ते हैं
मोतकिफ़ हो शैख़ अपने दिल में मस्जिद से निकल
यार निकला है आफ़्ताब की तरह
हक़ रखे उस को सलामत हिन्द में