अपनी पहचान भीड़ में खो कर
ख़ुद को कमरों में ढूँडते हैं लोग
Allama Iqbal
Habib Jalib
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Gulzar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(574) Peoples Rate This
कोई दुआ कभी तो हमारी क़ुबूल कर
जिन से अँधेरी रातों में जल जाते थे दिए
अपने अफ़्साने की शोहरत उसे मंज़ूर न थी
बूँद बन बन के बिखरता जाए
दोस्ती इश्क़ और वफ़ादारी
कहाँ जाती हैं बारिश की दुआएँ
यादों की रुत के आते ही सब हो गए हरे
आरज़ू थी एक दिन तुझ से मिलूँ
बीच का बढ़ता हुआ हर फ़ासला ले जाएगा
पुरखों से जो मिली है वो दौलत भी ले न जाए
धूल उड़ती है धूप बैठी है
निकले कभी न घर से मगर इस के बावजूद