सुख़नवरी से है मक़्सूद मअ'रिफ़त फ़न की
मैं बे-हुनर हूँ तलाश-ए-हुनर में रहता हूँ
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बड़ी दानाई से अंदाज़-ए-अय्यारी बदलते हैं
लिख रहा हूँ हर्फ़-ए-हक़ हर्फ़-ए-वफ़ा किस के लिए
मैं अब्र-ओ-बाद से तूफ़ाँ से सब से डरता हूँ
ख़ुशियाँ न छोड़ अपने लिए ग़म तलब न कर
उस की जानिब देखते थे और सब ख़ामोश थे
मौसम-ए-गुल कुंज-ए-गुलशन निकहत-ए-गेसू न हो
जाने क्यूँ बातों से जलते हैं गिले करते हैं लोग
जो नज़र आता नहीं दीवार में दर और है
धूप की शिद्दत में नंगे पाँव नंगे सर निकल
अजब इंसान हूँ ख़ुश-फ़हमियों के घर में रहता हूँ
मेरे ख़ुश-आइंद-मुस्तक़बिल का पैग़म्बर भी तू