बंद महरम के वो खुलवातें हैं हम से बेशतर
आज-कल सोने की चिड़िया है हमारे हाथ में
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आशिक़ जो हुआ है तू किसी पर नागाह
ले के अपनी ज़ुल्फ़ को वो प्यारे प्यारे हाथ में
ऐ नोश-ए-लब-ओ-माह-रुख़-ओ-ज़ोहरा-जबीं
बर-सर-ए-लुत्फ़ आज चश्म-ए-दिल-रुबा थी मैं न था
बे-दिए ले उड़ा कबूतर ख़त
मुहताज नहीं क़ाफ़िला आवाज़-ए-दरा का
जानाँ को सर-ए-मेहर-ओ-वफ़ा है झूट सब
सूरत वो पहली कि हो मगर माह-ए-तमाम
क्या मेरे काम से है रवाई को दुश्मनी
तेरे दर से मैं उठा लेकिन न मेरा दिल उठा
हक़ ये है कि का'बे की बिना भी न पड़ी थी
अपना अपना रंग दिखलाती हैं जानी चूड़ियाँ