न बज़ला-संज न शाएर न शोख़-तब्अ रक़ीब
दिया है आप ने ख़ल्वत में अपनी बार किसे
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नागाह मुझे दिखा के ताब-ए-रुख़्सार
साहिल पर आ के लगती है टक्कर सफ़ीने को
इख़्लास की धोके पर हूँ माइल तेरा
अफ़्साना-ए-मजनूँ से नहीं कम मिरा क़िस्सा
है जल्वा-फ़रोशी की दुकाँ जो ये अब इसी ने
मिल जाएँ अज़दहाम में हम ही ये हम से दूर
हर चंद लुत्फ़-ओ-मेहरबानी पेश आए
पुर्सिश को अगर होंट तुम्हारे नहीं हिलते
कहाँ है तू कहाँ है और मैं हूँ
'नाज़िम' ये इंतिज़ाम रिआ'यत है नाम की
यहाँ काल से है तरह तरह की तकलीफ़
बर-सर-ए-लुत्फ़ आज चश्म-ए-दिल-रुबा थी मैं न था