हर चंद लुत्फ़-ओ-मेहरबानी पेश आए
हरगिज़ कोई उस शोख़ को साक़ी न बनाए
महफ़िल में शराब किस को पहुँची जब जाम
रख़्ना-गरी-ए-मिज़ा से छलनी बन जाए
Gulzar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(603) Peoples Rate This
उलझे जो रक़ीब से वो कल पी के शराब
बर-सर-ए-लुत्फ़ आज चश्म-ए-दिल-रुबा थी मैं न था
मिल जाएँ अज़दहाम में हम ही ये हम से दूर
क्या बात है कारसाज़ तेरी मैं कौन
जानाँ को सर-ए-मेहर-ओ-वफ़ा है झूट सब
सूरत वो पहली कि हो मगर माह-ए-तमाम
है आईना-ख़ाने में तिरा ज़ौक़-फ़ज़ा रक़्स
कलाम-ए-सख़्त कह कह कर वो क्या हम पर बरसते हैं
घर की वीरानी को क्या रोऊँ कि ये पहले सी
क्या खाएँ हम वफ़ा में अब ईमान की क़सम
ज़ाहिर में अगरचे यार ग़म-ख़्वार नहीं