आ जाए अगर हुक्म फ़लक से 'नाज़िम'
उस हुक्म को हम सुनें मलक से 'नाज़िम'
है इस को मुख़ालिफ़त मय-ए-नाब के साथ
खोलेंगे न हम रोज़ा नमक से 'नाज़िम'
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Wasi Shah
Rahat Indori
Anwar Masood
Gulzar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(732) Peoples Rate This
हर चंद लुत्फ़-ओ-मेहरबानी पेश आए
नागाह मुझे दिखा के ताब-ए-रुख़्सार
आशिक़ जो हुआ है तू किसी पर नागाह
जानाँ को सर-ए-मेहर-ओ-वफ़ा है झूट सब
अपना अपना रंग दिखलाती हैं जानी चूड़ियाँ
है आईना-ख़ाने में तिरा ज़ौक़-फ़ज़ा रक़्स
सँभाल वाइ'ज़ ज़बान अपनी ख़ुदा से डरा इक ज़रा हया कर
पुर्सिश को अगर होंट तुम्हारे नहीं हिलते
जुम्बिश अबरू को है लेकिन नहीं आशिक़ पे निगाह
उलझे जो रक़ीब से वो कल पी के शराब
क्या खाएँ हम वफ़ा में अब ईमान की क़सम
जब तिरा नाम सुना तो नज़र आया गोया