हूँ वो बर्बाद कि क़िस्मत में नशेमन न क़फ़स
चल दिया छोड़ कर सय्याद तह-ए-दाम मुझे
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मंदिर भी साफ़ हम ने किए मस्जिदें भी पाक
ये किस से आज बरहम हो गई है
हिज्राँ की शब जो दर्द के मारे उदास हैं
जब काली घटाएँ झूम कर आती हैं
वो दिल कहाँ है अहल-ए-नज़र दिल कहें जिसे
न इल्म है न ज़बाँ है तो किस लिए 'महरूम'
तलातुम आरज़ू में है न तूफ़ाँ जुस्तुजू में है
कम न थी सहरा से कुछ भी ख़ाना-वीरानी मिरी
दस्त-ए-ख़िरद से पर्दा-कुशाई न हो सकी
सितम कोई नया ईजाद करना
फ़रियाद है किस लिए दर-ए-यज़्दाँ पर
ग़लत की हिज्र में हासिल मुझे क़रार नहीं