ख़ुद चले आओ या बुला भेजो
रात अकेले बसर नहीं होती
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दिल के अज्ज़ा में नहीं मिलता कोई जुज़्व-ए-निशात
दिल आया इस तरह आख़िर फ़रेब-ए-साज़-ओ-सामाँ में
ये तेरी आरज़ू में बढ़ी वुसअत-ए-नज़र
बताओ ऐसे मरीज़ों का है इलाज कोई
हमेशा से मिज़ाज-ए-हुस्न में दिक़्क़त-पसंदी है
अपने मरकज़ की तरफ़ माइल-ए-परवाज़ था हुस्न
भड़क उट्ठेंगे शो'ले एक दिन दुनिया की महफ़िल में
चारागर चुप हैं क्यूँ इलाज करें
मिरे दहन में अगर आप की ज़बाँ होती
ऐ दिल ये है ख़िलाफ़-ए-रस्म-ए-वफ़ा-परस्ती
वही हिकायत-ए-दिल थी वही शिकायत-ए-दिल
हादसात-ए-दहर में वाबस्ता-ए-अर्बाब-ए-दर्द