Couplets Poetry (page 304)
कहा इठला के उस ने आइए ना
मोहम्मद यूसुफ़ पापा
झूट है दिल न जाँ से उठता है
मोहम्मद यूसुफ़ पापा
जल गया कौन मेरे हँसने पर
मोहम्मद यूसुफ़ पापा
जब हुआ काले का गोरे से मिलाप
मोहम्मद यूसुफ़ पापा
जब भी वालिद की जफ़ा याद आई
मोहम्मद यूसुफ़ पापा
इश्क़ औलाद कर रही है मगर
मोहम्मद यूसुफ़ पापा
दूसरी ने जो सँभाली चप्पल
मोहम्मद यूसुफ़ पापा
दुश्मनों की दुश्मनी मेरे लिए आसान थी
मोहम्मद यूसुफ़ पापा
दबाना शर्त है बजते हैं सारे
मोहम्मद यूसुफ़ पापा
अपने दम से है ज़माने में घोटालों का वजूद
मोहम्मद यूसुफ़ पापा
मुट्ठी में क्या धरी थी कि चुपके से सौंप दी
मोहम्मद यूसुफ़ अली ख़ाँ नाज़िम रामपुरी
बोस-ओ-कनार के लिए ये सब फ़रेब हैं
मोहम्मद यूसुफ़ अली ख़ाँ नाज़िम रामपुरी
सच बता इश्क़ मुझे सख़्त परेशाँ हूँ मैं
मोहम्मद तन्वीरुज़्ज़मां
जब तुम्हारी आरज़ू बाक़ी नहीं
मोहम्मद तन्वीरुज़्ज़मां
वही है इख़्तिलाफ़-ए-बाहमी की अंजुमन अब तो
मोहम्मद ताहा खान
प्यास के शहर में दरिया भी सराबों का मिला
मोहम्मद सालिम
भूल गया हूँ सब कुछ 'सालिम' मुझ को कुछ भी याद नहीं
मोहम्मद सालिम
मैं तुझ से अपना तअल्लुक़ छुपा नहीं सकता
मोहम्मद सलीम ताहिर
मेरी अपनी ज़ात ही इक अंजुमन से कम न थी
मोहम्मद सज्जाद मिर्ज़ा
उदास रुत है अभी तक मिरे तआक़ुब में
मोहम्मद नवेद मिर्ज़ा
तिरी जुदाई का मौसम भी ख़ूबसूरत है
मोहम्मद नवेद मिर्ज़ा
मियाँ ये चादर-ए-शोहरत तुम अपने पास रखो
मोहम्मद मुख़तार अली
दिलों से दर्द दुआ से असर निकलता है
मोहम्मद मुख़तार अली
ये क़िस्सा-ए-जाँ यूँ ही मशहूर नहीं होता
मोहम्मद ख़ालिद
पहले सब आवाज़ें इक शोर में ढलती हैं
मोहम्मद ख़ालिद
कौन सुनता है हवाओं की अजब सरगोशियाँ
मोहम्मद ख़ालिद
कफ़-ए-सैय्याद दाम-ए-ख़ुश-नुमा ज़ंजीर ओ ज़िंदाँ तक
मोहम्मद ख़ालिद
हाँ मैं शिकस्ता-दिल हूँ मगर आइना तो हूँ
मोहम्मद ख़ालिद
छूटे हैं ऐसे बार-ए-सफ़र से तमाम लोग
मोहम्मद ख़ालिद
अव्वल-ए-इश्क़ की साअत जा कर फिर नहीं आई
मोहम्मद ख़ालिद