Couplets Poetry (page 306)

उतार फेंकूँ बदन से फटी पुरानी क़मीस

मोहम्मद अल्वी

उसे मैं ने भी कल देखा था 'अल्वी'

मोहम्मद अल्वी

उस से मिले ज़माना हुआ लेकिन आज भी

मोहम्मद अल्वी

उस से बिछड़ते वक़्त मैं रोया था ख़ूब-सा

मोहम्मद अल्वी

उस से भी मिल कर हमें मरने की हसरत रही

मोहम्मद अल्वी

उन को गुनाह करते हुए मैं ने जा लिया

मोहम्मद अल्वी

उन दिनों घर से अजब रिश्ता था

मोहम्मद अल्वी

तुड़ा-मुड़ा है मगर ख़ुदा है

मोहम्मद अल्वी

थोड़ी सर्दी ज़रा सा नज़ला है

मोहम्मद अल्वी

तिरा न मिलना अजब गुल खिला गया अब के

मोहम्मद अल्वी

तारीफ़ सुन के दोस्त से 'अल्वी' तू ख़ुश न हो

मोहम्मद अल्वी

सुब्ह से खोद रहा हूँ घर को

मोहम्मद अल्वी

शरीफ़े के दरख़्तों में छुपा घर देख लेता हूँ

मोहम्मद अल्वी

शांति की दुकानें खोली हैं

मोहम्मद अल्वी

सर्दी में दिन सर्द मिला

मोहम्मद अल्वी

सामने दीवार पर कुछ दाग़ थे

मोहम्मद अल्वी

सदियों से किनारे पे खड़ा सूख रहा है

मोहम्मद अल्वी

सब नमाज़ें बाँध कर ले जाऊँगा मैं अपने साथ

मोहम्मद अल्वी

रोज़ कहता है हवा का झोंका

मोहम्मद अल्वी

रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसू

मोहम्मद अल्वी

रखते हो अगर आँख तो बाहर से न देखो

मोहम्मद अल्वी

रात पड़े घर जाना है

मोहम्मद अल्वी

रात मिली तन्हाई मिली और जाम मिला

मोहम्मद अल्वी

रात कौन आया था

मोहम्मद अल्वी

परिंदे दूर फ़ज़ाओं में खो गए 'अल्वी'

मोहम्मद अल्वी

पर तोल के बैठी है मगर उड़ती नहीं है

मोहम्मद अल्वी

पहली बूँद गिरी टिप से

मोहम्मद अल्वी

ऑफ़िस में भी घर को खुला पाता हूँ मैं

मोहम्मद अल्वी

नज़रों से नापता है समुंदर की वुसअतें

मोहम्मद अल्वी

नया साल दीवार पर टाँग दे

मोहम्मद अल्वी

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