Couplets Poetry (page 308)

ग़ज़ल कही है कोई भाँग तो नहीं पी है

मोहम्मद अल्वी

घर ने अपना होश सँभाला दिन निकला

मोहम्मद अल्वी

घर में सामाँ तो हो दिलचस्पी का

मोहम्मद अल्वी

घर में क्या आया कि मुझ को

मोहम्मद अल्वी

ग़म बहुत दिन मुफ़्त की खाता रहा

मोहम्मद अल्वी

गवाही देता वही मेरी बे-गुनाही का

मोहम्मद अल्वी

गली में कोई घर अच्छा नहीं था

मोहम्मद अल्वी

'फ़ैज़'-साहिब शेर क्यूँ कहते नहीं

मोहम्मद अल्वी

इक याद रह गई है मगर वो भी कम नहीं

मोहम्मद अल्वी

इक लड़का था इक लड़की थी

मोहम्मद अल्वी

इक दिया देर से जलता होगा

मोहम्मद अल्वी

दोनों के दिल में ख़ौफ़ था मैदान-ए-जंग में

मोहम्मद अल्वी

दिन ढल रहा था जब उसे दफ़ना के आए थे

मोहम्मद अल्वी

दिन भर बच्चों ने मिल कर पत्थर फेंके फल तोड़े

मोहम्मद अल्वी

दिल का आईना हुआ जाता है धुँदला धुँदला

मोहम्मद अल्वी

दिल है प्यासा हुसैन के मानिंद

मोहम्मद अल्वी

धूप ने गुज़ारिश की

मोहम्मद अल्वी

ढूँडता हूँ मैं ज़मीं अच्छी सी

मोहम्मद अल्वी

ढूँडने में भी मज़ा आता है

मोहम्मद अल्वी

देखा तो सब के सर पे गुनाहों का बोझ था

मोहम्मद अल्वी

देखा न होगा तू ने मगर इंतिज़ार में

मोहम्मद अल्वी

दरवाज़े पर पहरा देने

मोहम्मद अल्वी

छोड़ गया मुझ को 'अल्वी'

मोहम्मद अल्वी

चला जाऊँगा जैसे ख़ुद को तन्हा छोड़ कर 'अल्वी'

मोहम्मद अल्वी

बुला रहा था कोई चीख़ चीख़ कर मुझ को

मोहम्मद अल्वी

बिना मुर्ग़े के पर झटकती हैं

मोहम्मद अल्वी

बिखेर दे मुझे चारों तरफ़ ख़लाओं में

मोहम्मद अल्वी

बिछड़ते वक़्त ऐसा भी हुआ है

मोहम्मद अल्वी

बाज़ार के दामों की शिकायत है हर इक को

मोहम्मद अल्वी

बत्ती बुझा के हीरो हीरोइन लिपट गए

मोहम्मद अल्वी

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