Couplets Poetry (page 309)
बस के नीचे कोई नहीं आता फिर भी
मोहम्मद अल्वी
बहुत नेक बंदे हैं अब भी तिरे
मोहम्मद अल्वी
बहुत ख़ुश हुए आईना देख कर
मोहम्मद अल्वी
और बाज़ार से क्या ले जाऊँ
मोहम्मद अल्वी
अरे ये दिल और इतना ख़ाली
मोहम्मद अल्वी
अपना घर आने से पहले
मोहम्मद अल्वी
अँधेरी रातों में देख लेना
मोहम्मद अल्वी
अंधेरा है कैसे तिरा ख़त पढ़ूँ
मोहम्मद अल्वी
'अल्वी' ये मो'जिज़ा है दिसम्बर की धूप का
मोहम्मद अल्वी
'अल्वी' ने आज दिन में कहानी सुनाई थी
मोहम्मद अल्वी
'अल्वी' ख़्वाहिश भी थी बाँझ
मोहम्मद अल्वी
ऐसा हंगामा न था जंगल में
मोहम्मद अल्वी
अच्छे दिन कब आएँगे
मोहम्मद अल्वी
अभी दो चार ही बूँदें गिरीं हैं
मोहम्मद अल्वी
अब तो चुप-चाप शाम आती है
मोहम्मद अल्वी
अब न 'ग़ालिब' से शिकायत है न शिकवा 'मीर' का
मोहम्मद अल्वी
अब किसी की याद भी आती नहीं
मोहम्मद अल्वी
आसमान पर जा पहुँचूँ
मोहम्मद अल्वी
आँखें खोलो ख़्वाब समेटो जागो भी
मोहम्मद अल्वी
आज फिर मुझ से कहा दरिया ने
मोहम्मद अल्वी
आग अपने ही लगा सकते हैं
मोहम्मद अल्वी
आँख पड़ती है कहीं पाँव कहीं पड़ता है
मोहम्मद अली तिशना
वो यक़ीनन वली सिफ़त होगा
मोहम्मद अली साहिल
सब के होंटों पे वारदात के बअ'द
मोहम्मद अली साहिल
मेरी नींदें हराम क्या होंगी
मोहम्मद अली साहिल
मेरी आँखों में हुए रौशन जो अश्कों के चराग़
मोहम्मद अली साहिल
मसअले तो ज़िंदगी में रोज़ आते हैं मगर
मोहम्मद अली साहिल
मरते दम तक सब मुझ को इंसान कहें
मोहम्मद अली साहिल
कोई करता है जब हिन्दोस्तान की बात ए 'साहिल'
मोहम्मद अली साहिल
जो असासा ज़िंदगी का उस ने जोड़ा उम्र भर
मोहम्मद अली साहिल