Love Poetry of Habeeb Ahmad Siddiqui
नाम | हबीब अहमद सिद्दीक़ी |
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अंग्रेज़ी नाम | Habeeb Ahmad Siddiqui |
जन्म की तारीख | 1908 |
या दैर है या काबा है या कू-ए-बुताँ है
वो करम हो कि सितम एक तअल्लुक़ है ज़रूर
वो भला कैसे बताए कि ग़म-ए-हिज्र है क्या
निगाह-ए-लुत्फ़ को उल्फ़त-शिआर समझे थे
कितने सनम ख़ुद हम ने तराशे
कभी बे-कली कभी बे-दिली है अजीब इश्क़ की ज़िंदगी
जब कोई फ़ित्ना-ए-अय्याम नहीं होता है
इज़हार-ए-ग़म किया था ब-उम्मीद-ए-इल्तिफ़ात
हाए बे-दाद-ए-मोहब्बत कि ये ईं बर्बादी
एक काबा के सनम तोड़े तो क्या
चश्म-ए-सय्याद पे हर लहज़ा नज़र रखता है
ब-सद अदा-ए-दिलबरी है इल्तिजा-ए-मय-कशी
आश्ना जब तक न था उस की निगाह-ए-लुत्फ़ से
ये ग़म नहीं है कि अब आह-ए-ना-रसा भी नहीं
वो दर्द-ए-इश्क़ जिस को हासिल-ए-ईमाँ भी कहते हैं
उन निगाहों को अजब तर्ज़-ए-कलाम आता है
नवेद-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार भी तो नहीं
न बेताबी न आशुफ़्ता-सरी है
कुछ भी दुश्वार नहीं अज़्म-ए-जवाँ के आगे
ख़िज़ाँ-नसीब की हसरत ब-रू-ए-कार न हो
जबीं-ए-नवाज़ किसी की फ़ुसूँ-गरी क्यूँ है
दुनिया को रू-शनास-ए-हक़ीक़त न कर सके
और ऐ चश्म-ए-तरब बादा-ए-गुलफ़ाम अभी