ऐ बे-ख़बरी की नींद सोने वालो
अफ़्सुर्दगी और गर्म-जोशी भी ग़लत
या-रब कोई नक़्श-ए-मुद्दआ भी न रहे
शैतान करता है कब किसी को गुमराह
इक आलम-ए-ख़्वाब ख़ल्क़ पर तारी है
गर रूह न पाबंद-ए-तअ'य्युन होती
बदला नहीं कोई भेस नाचारी से
लाखों चीज़ें बना के भेजें अंग्रेज़
गर नेक दिली से कुछ भलाई की है
चिड़िया के बच्चे
क्या कहते हैं इस में मुफ़्तियान-ए-इस्लाम
तारीक है रात और दुनिया ज़ख़्ख़ार