किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
रात जब भीग के लहराती है
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
एक कम-सिन हसीन लड़की का
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या