उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
रात जब भीग के लहराती है
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
एक कम-सिन हसीन लड़की का
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
तितली कोई बे-तरह भटक कर