हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
एक कम-सिन हसीन लड़की का
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
इक ज़रा रसमसा के सोते में
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
रात जब भीग के लहराती है
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में