साल-हा-साल और इक लम्हा
हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
उस के और अपने दरमियान में अब
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
सर में तकमील का था इक सौदा
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल