लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
ज़ब्त-ए-गिर्या
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने