बरसात है दिल डस रहा है पानी
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
ज़ब्त-ए-गिर्या
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर